ज़िद कभी न हारने की

ज़िद कभी न हारने की
वज़ह कभी बनती है हार की
राजेश’अरमान’

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कभी बादलों से

कभी बादलों से कभी बिजलिओं से बनती है सरगम कलकल बहते पानी चलती हवाओं से बनती है सरगम इठलाती घूमती बेटियां होती झंकार बनती है…

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