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अगर मै कुड़ा कागज होता,

अगर मै कुड़ा-कागज होता ,
तो मेरा कोई ना सुबह होता ना शाम होता, ना घर होता ना परिवार होता,
शिर्फ मेरे साथ रास्ते का धुल होता,,,,,
अगर मै कुड़ा–कागज होता,
कभी पढ़ने का काम आ जाता कभी बच्चे के खेलने मे काम आ जाता ,,
अगर मेरी अस्तीत इंसान के बीच खत्म भी हो जाती ,,
तो मै किसी काबारी को भी काम आता!! ,अगर मै कुड़ा -कागज होता_,
ना मेरी कभी अंत होती !!
मुझे फिर से नया बनाया जाता कभी अफसरो के बीच कभी मजदुर के बीच सिपाही के बीच मेरा सुबह शाम होता ,
मेरा वही परिवार होता मेरा हँसता खेलता सुबह शाम होता ,,
फिर कभी हवा के साथ के साथ कभी रोड पर धुल मे खुले -आम लर जाता,,
अगर मै कुड़ा-,कागज होता।।।
जेपी सिह

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