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अभिलाषा

मैं कब कहता हूँ फूलों की सेज मिले,
मुझे तो कमल जैसी सुदृढ मन मिले l
जो खिलता तो कीचड़ में है,
पर दाग नहीं लगने देता दामन में l

कब कहता हूँ पीड़ा रहित जीवन मिले,
मुझे तो गुलाब जैसी जज़्बा मिले l
जो कांटों में भी मुस्कुराते रहें,
फिर भी प्यार का प्रतीक कहलाए ll

मैं कब कहता हूँ कि दूसरों की सेवा मिले,
मुझे तो रजनीगंधा जैसी सेवा भाव मिले l
जो डाली से टूटकर कहीं और सज जाए,
फिर भी खुशबू फैलाती जाए l

Rajiv Mahali

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