अभिलाषा
मैं कब कहता हूँ फूलों की सेज मिले,
मुझे तो कमल जैसी सुदृढ मन मिले l
जो खिलता तो कीचड़ में है,
पर दाग नहीं लगने देता दामन में l
कब कहता हूँ पीड़ा रहित जीवन मिले,
मुझे तो गुलाब जैसी जज़्बा मिले l
जो कांटों में भी मुस्कुराते रहें,
फिर भी प्यार का प्रतीक कहलाए ll
मैं कब कहता हूँ कि दूसरों की सेवा मिले,
मुझे तो रजनीगंधा जैसी सेवा भाव मिले l
जो डाली से टूटकर कहीं और सज जाए,
फिर भी खुशबू फैलाती जाए l
Rajiv Mahali
बेहतर रचना
सुंदर भाव
वाह वाह बहुत खूब
धन्यवाद
✍👌👌👌👌
धन्यवाद
बहुत खूब
Thank you
Badia
Thank you
Thanks
good
Thank you