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आकाश

बिम्ब बनाना चाहता हूँ
तेरा आकाश,
मगर कहाँ से शुरू करूँ
सोच रहा विश्वास।
सोच रहा विश्वास,
इस कदर विस्तृत है तू
आदि अंत का नहीं
पता बस विस्तृत है तू।
कहे लेखनी भानु,
चमकता जीवनदायी,
चंदा-तारे, नखत,
सभी ने छवि बिखरायी।

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