कोई मेरी व्यथा क्यों समझता नहीं,
मैं भी प्यासा हूं,मेरे लिए कोई पानी रखता नहीं।
बढ़ रही उमस इतनी,और धूप कितनी तेज है,
पानी के लिए मैं तरसता,इसका मुझको खेद है,
सब जानते हैं बिन पानी जीवित कोई बचता नहीं,
मैं भी प्यासा हूं मेरे लिए कोई पानी क्यूं रखता नहीं,
पानी व्यर्थ बहाते सब मेरे लिए पानी नहीं,
सदियों से चला आ रहा,यह कोई नई कहानी नहीं,
उड़ता रहता हूं गगन में ,पर पानी मुझे दिखता नहीं,
मैं भी प्यासा हूं मेरे लिए कोई पानी क्यों रखता नहीं।
मैं कोई और नहीं मैं हूं चिड़िया पक्षी खग हूं,
जब तक सांसे मेरी तब तक मैं हूं,
मैं भी तो इस जग का हिस्सा,
मानवता के नाते क्या आप से कोई रिश्ता नहीं,
मैं भी प्यासा हूं मेरे लिए कोई पानी रखता नहीं।
दिन भर उड़ता फिरता मै रहता हूं,
कभी इस डाल पर कभी उस डाल विचरण करता हूं,
थक हार जब आप की छतों पर आता,
थोड़ा सा पानी चाहिए, चाहिए पूरा मटका नहीं,
मैं भी प्यासा हूं मेरे लिए कोई पानी रखता नहीं।
आप सब से मेरा विनम्र निवेदन,
मेरा आग्रह पहुंचाओ जन- जन,
अपनी-अपनी छतों पर मेरे लिए पानी रखो,
जिसकी मुझे आवश्यकता बड़ी,
पानी मिलेगा मुझे भी प्यास मेरी भी मिटेगी,और तृप्त हो जाऊंगा वहीं,
मैं भी प्यासा हूं मेरे लिए कोई पानी रखता नहीं।