डटे हुए हैं सीमा में वे, रोक रहे हैं दुश्मन को,
चढ़ा रहे हैं लहू- श्रमजल, मिटा रहे हैं दुश्मन को।
ठंडक हो बरसात लगी हो, चाहे गर्मी की ऋतु हो,
सरहद के रक्षक फौलादी, रौंध रहे हैं दुश्मन को।
भारत माता की रक्षा पर, तत्पर शीश चढ़ाने को,
निडर खड़े हैं रक्षक बनकर, रौंध रहे हैं दुश्मन को।
आज उन्हें जय हिंद लिख रही, अक्षरजननी यह कवि की,
जो सीमा पर डटे हुए हैं, रोक रहे हैं दुश्मन को।
मात्रिक छंद – उल्लाला छंद 15-13 में, देश प्रेम संजोती उल्लाला पंक्तियाँ।