आत्महत्या न कर
जिन्दगी को बचा,
कोई दुख तेरे जीवन ज्यादा नहीं।
देख चारों तरफ
जो घटित हो रहा
ढूंढ खुशियां उसी में, दुखों को नहीं।
दुःख तो आते रहेंगे
जाते रहेंगे।
तेरा आना न होगा दुबारा यहां।
रूठ जाये भले
तुझसे संसार यह,
पर स्वयं से कभी रूठ जाना नहीं।
भोग ले सारे संसार के
सुख व दुख
पर दुखों स्वयं को डराना नहीं।
आस मत रख किसी से
जी बिंदास बन
अपने जीवन ऐसे डुबाना नहीं।
और बुझदिल न बन
कर ले संघर्ष तू
आत्महत्या से खुद को गंवाना नहीं।
—– डॉ0 सतीश पाण्डेय,