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आशीष देने वाले

बस-दस पंद्रह साल में,
इस दुनियां के माया – जाल से,
एक पीढ़ी विदा हो जाएगी
अफसोस ,जुदा हो जाएगी
इस पीढ़ी के लोग ही कुछ अलग हैं
रात को जल्दी सोने वाले,
भोर होते ही घूमने वाले
आंगन के पौधों को पानी देते,
बच्चों के दादाजी-नानाजी कहलाते
स्नान कर करते हैैं पूजा
उनके जैसा नहीं कोई दूजा
मंदिर भी जाते हर रोज़
वो चले गए तो,
कहां से लाएंगे उनको खोज
पुराने छोटे से फोन से ही,
बात करें गौर से
मित्रों, रिश्तेदारों के नंबर भी,
डायरी में लिखते, आज के दौर में
आते-जाते को नमस्ते करें झुका कर शीश
छोटों को हरदम, देते हैं आशीष
गर्मियों में अचार,पापड़ भी बनाते,
सदा देसी टमाटर और ताजे फल ही लाते
उनका अपना अनोखा सा संसार है,
उनके पास औषधियों और
तजुर्बों की भरमार है
हमें बहुत करना है इनका सम्मान,
ना जानें कब चले जाएं,
छोड़ कर ये जहान ।।

*****✍️गीता

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