आशीष देने वाले
बस-दस पंद्रह साल में,
इस दुनियां के माया – जाल से,
एक पीढ़ी विदा हो जाएगी
अफसोस ,जुदा हो जाएगी
इस पीढ़ी के लोग ही कुछ अलग हैं
रात को जल्दी सोने वाले,
भोर होते ही घूमने वाले
आंगन के पौधों को पानी देते,
बच्चों के दादाजी-नानाजी कहलाते
स्नान कर करते हैैं पूजा
उनके जैसा नहीं कोई दूजा
मंदिर भी जाते हर रोज़
वो चले गए तो,
कहां से लाएंगे उनको खोज
पुराने छोटे से फोन से ही,
बात करें गौर से
मित्रों, रिश्तेदारों के नंबर भी,
डायरी में लिखते, आज के दौर में
आते-जाते को नमस्ते करें झुका कर शीश
छोटों को हरदम, देते हैं आशीष
गर्मियों में अचार,पापड़ भी बनाते,
सदा देसी टमाटर और ताजे फल ही लाते
उनका अपना अनोखा सा संसार है,
उनके पास औषधियों और
तजुर्बों की भरमार है
हमें बहुत करना है इनका सम्मान,
ना जानें कब चले जाएं,
छोड़ कर ये जहान ।।
*****✍️गीता
Waah waah, बहुत बढ़िया
सादर धन्यवाद सर बहुत बहुत आभार 🙏
बहुत ही सुंदर और अक्षरसह सत्य गीता जी
बहुत बहुत धन्यवाद आपका राजीव जी🙏
अतिसुंदर भाव
सादर धन्यवाद भाई जी 🙏
कवि गीता जी की यह कविता बुजुर्ग पीढ़ी पर प्रकाश डालती सुन्दर कविता है। मानव समाज बुजुर्गों के आशीर्वाद के बिना आगे बढ़ने की बात सोचता है तो वह मिथ्या है। शायर दरवेश भारती जी ने लिखा है कि –
बुजुर्ग ही नहीं था वह एक घना दरख़्त था
कि जिसके साये में पलकर हम जवान हुए।
गीता जी की कविता यह संदेश देने में सफल रही है कि हमें अपने बड़े बुजुर्गों को अंगूठा दिखाने की बजाय सम्मान से उनका अंगूठा थामना चाहिए, उनका सम्मान करना चाहिए। बहुत प्रबल भाव पक्ष है।
“उनका अपना अनोखा सा संसार है,” जैसी पंक्तियाँ अलंकारिक शैली में खूबसूरती से कथ्य को प्रस्तुत कर रही हैं।
इतनी सुन्दर व्याख्या की है सतीश जी मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है कि कैसे धन्यवाद करूं । आपकी समीक्षा को सैल्यूट है सर ।दंडवत प्रणाम ।
वाह वाह, बहुत खूब
बहुत बहुत धन्यवाद आपका पियूष जी