राग कहाँ रागिनी कहाँ मेरी
इस सड़क पर लिखी कहानी है,
दो घड़ी आप भी खड़े होकर
देख लो क्या है मेरी कहानी है।
लोहड़ी क्या, कई त्यौहार आये
आपने खीर पुए खूब खाये
मगर मुझे तो बस सुगन्ध आई
वो भी जब यह हवा बहा लाई।
कभी तो सोचता हूँ मैं नहीं मानव
मगर ये हाथ-पांव, मुंह-आंखें
किसी मनुष्य की तरह ही हैं
जो मुझे भी मनुष्य कहती हैं।
ठंड क्या गर्मियां हों बारिश हो
कोई त्यौहार हो या रौनक हो
मगर मैं एक सा रहा अब तक
पड़ा हूँ इस तरह से बेदम हो।
राग कहाँ रागिनी कहाँ मेरी
इस सड़क पर लिखी कहानी है,
दो घड़ी आप भी खड़े होकर
देख लो क्या है मेरी कहानी है।