ईश्वर केवल पूजा से
ईश्वर केवल पूजा से
प्रसन्न नहीं होते हैं,
वे प्राणिमात्र की सेवा से
प्रसन्न हुआ करते हैं।
किसी तड़पते राही को
गर बिना मदद के छोड़ दिया
फिर चाहे कितनी पूजा हो
मुँह मोड़ लिया करते हैं।
रोते दीन-हीन भूखे के
आँसू यदि हम पोछ सकें
दूजे के हित में भी यदि हम
थोड़ी बातें सोच सकें,
तब समझो सच्ची पूजा
करने में हुए सफल हम हैं,
अन्यथा ईश की सेवा और
पूजा में हुए विफल हम हैं।
बहुत खूब
अतिसुंदर अभिव्यक्ति
जीवन की सच्चाइयों से अवगत करवाते हुई कवि सतीश जी की बेहद उत्कृष्ट रचना है यह,”रोते दीन-हीन भूखे के आँसू यदि हम पोछ सकें
दूजे के हित में भी यदि हम थोड़ी बातें सोच सकें,
तब समझो सच्ची पूजा करने में हुए सफल हम हैं,”
_____एकदम सत्य और सटीक कथ्य, अनुभूति की लाजवाब अभिव्यक्ति। उम्दा लेखन..