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उदास खिलौना : बाल कबिता

मेरी गुड़िया रानी आखिर
क्यों बैठी है गुमसुम होकर।
हो उदास ये पूछ रहे हैं
तेरे खिलौने कुछ कुछ रोकर।।
कुछ खाओ और मुझे खिलाओ
‘चंदा मामा….’ गा-गाकर।
तुम गाओ मैं नाचूँ संग- संग
डम -डम ड्रम बजाकर ।।
वश मुन्नी तू इतना कर दे।
चल मुझ में चाभी भर दे।।
देख उदासी तेरा ‘विनयचंद ‘
रहा उदास खिलौना होकर।
मेरी गुड़िया रानी आखिर
क्यों बैठी है गुमसुम होकर।।

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