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उम्मीदों का पुलिंदा

उम्मीदों ने ही किया घायल
और उम्मीदों पे ही जिंदा था,
इस उम्मीद- ए- जहां का
मै एक मासूम परिंदा था।।

कूट के भरा था दिल में प्यार
प्यार का मै बंदा था,
सादगी की सादी चादर औढे
मासूमियत का मै पुलिंदा था,

पर ना था महफूज शायद
जमाना मेरी उम्मीदों के लिए,
यहां तो ये मासूमियत बस
शातिर लोगो को धंधा था।।

ना कद्र मेरी उम्मीदों की
ना मासूमियत को प्यार मिला,
ये सब तो इस जमाने में
मानो गरीब का चन्दा था।।

तब तक मरता ही रहा
जब तक मै जिंदा था,
इस उम्मीद- ए- जहां का
मै एक मासूम परिंदा था।।
AK

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