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उम्र की पतंगें !

कविता
 
उम्र की पतंगें
: अनुपम त्रिपाठी
 
वे, बच्चे !
बड़े उल्हास से
चहकते—मचलते; पतंग उड़ाते
…………. अचानक थम गए !!
 
उदास मन लिए
लौट चले घर को
———— पतंग छूट जाने से
———— डोर टू…ट जाने से
 
क्या, वे जान सकेंगे ?
कभी कि; ————
हम भी बिखेरा करते थे, मुसकानें यूं ही
: चढ़ती उम्र के; बे—पनाह जोश में .
 
मगर;——-
गुमसुम हैं, आज !
समय की रंगीन—अमूल्य पतंग; छूट जाने पर
अभिलाषा के अंत—हीन आकाश में ———–
—————–उम्मीद की डोर; टू…ट जाने पर .
 
‘वे’, तो खरीद लायेंगे
कल फिर,
कई उमंगें—–नई पतंगें
पर, क्या करें “हम” ????
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