Site icon Saavan

ऐसी मिठास फैले

दो पंक्तियों से मेरी
ऐसी मिठास फैले,
मिट जायें नफ़रतें सब
दूर हों झमेले।
कविता तो प्रेम को है
बस प्रेम ही हो मकसद
लिखूं प्रेम लिख दूँ
निकलें न पद विषैले।
क्या पा सकूँगा ऐसे
औरों को ठेस देकर,
पा कर भी क्या करूँगा
यूँ छदम वेश लेकर।
गम दूर कर सकूं तो
लिखना उचित है मेरा,
दूजे के गम बढ़ाकर
बांटू न मैं अंधेरा।
उग जाए मेरी कविता
सूखी हुई जमीं पर
कर दे हरा-भरा सब
विद्वेष में कमी कर।
दो पंक्तियों से मेरी
ऐसी मिठास फैले,
मिट जायें नफ़रतें सब
दूर हों झमेले।

Exit mobile version