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कर्मठ

जिन्दगी में भले ही हमें
आलसी लोग काफी दिखें,
पर कई इस तरह के हैं कर्मठ
अंत तक काम करते दिखे।
एक काकी है दुर्बल मगर
ऊंचे-नीचे पहाड़ी शहर में,
सिर से ढोती है भारी सिलिंडर
हांफती जा रही है वो दिनभर।
वृद्ध दादा जी फुटपाथ पर
उस कड़ी धूप में बैठकर
फर्ज अपना निभाते दिखे
जूते-चप्पल की मरमत में खप कर।
वो मुआ तो है चौदह का बस
जब से होटल में बर्तन घिसे हैं,
माँ बहन आदि परिवार के
तब से सचमुच में गेहूँ पिसे हैं।
एक है हाथ उस आदमी का
बस उसी से हथौड़ा उठा कर
पत्थर की रोड़ी बनाता
परिवार को पालता है।

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