कालेज का पहला दिन

कविता- कालेज का पहला दिन
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कालेज का,
पहला दिन,
एक अनजाने से ,
पहचान हुई,
पता नहीं था ,
उसके बारे में-
फिर भी दिल के,
पास हुई,
दिल का धड़कना,
बढ़ गया मेरे,
जब उसकी नजरें,
मेरे चेहरे पर हुई|
झूठ हसी-
हसता चेहरा बनाया,
डरता था मन ही मन,
कहीं कुछ बोल न दे,
मै घायल हुआ-
जब उसने,
चेहरे पर मुस्कान दिखाया,
मै सरमाया वो सरमाई,
झट हमने नजर हटाया|
फिर जाते अपनी अपनी कक्षा में,
“ऋषि” ढ़ुढ़े दोपहर कि छुट्टी मे,
कभी इस कमरे से उस कमरे तक,
ढुढ़ रहा हूँ-
खड़े खड़े कालेज के प्रागंण में|
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***✍ऋषि कुमार “प्रभाकर”——

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