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कितने मजबूर होकर यूँ हाथ फैलाते होंगे

कितने मजबूर होकर यूँ हाथ फैलाते होंगे,

भला किस तरह ये बच्चे सर झुकाते होंगे,

उम्मीदों के जुगनू ही बस मंडराते होंगे,

बड़ी मशक्कत से कहीं ये पेट भर पाते होंगे,

तन पर चन्द कपड़े ही बस उतराते होंगे,

शायद सोंच समझ कर ही ये मुस्काते होंगे,

बहुत संग दिल होकर ही वो इतराते होंगे,

हालत देख कर भी जो न प्रेम भाव दिखलाते होंगे।।

राही (अंजाना)

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