किस तरह की अहमियत है
आपकी इस जिन्दगी में,
चाह कर भी कह नहीं पाते हैं हम
बिन कहे भी रह नहीं पाते हैं हम।
दायरे हर बात के निश्चित किये हैं जिंदगी ने
दायरों में कैद भी तो रह नहीं पाते हैं हम।
फिर कभी यह सोचते हैं
लाभ क्या कहने से है,
बिन कहे जब एक-दूजे को
समझ जाते हैं हम।