कुछ नहीं साथ जाता

सदा को कौन रहता है
यहां इस जमीं में
समय करके पूरा
चले जाते सब हैं।
तेरा व मेरा सभी
कुछ यहीं पर
रह जाता है
कुछ नहीं साथ जाता।
न आने का मालूम
न जाने का मालूम
बीच के ही सपनों में
होता है मन गुम।
खुली नींद
सपना जैसे ही टूटा
वैसे ही डोरों से
नाता छूटा।
जद्दोजहद सब
यहीं छोड़कर वे
सांसें न जाने
कहाँ भागती हैं।
जानते हुए सब
सच्चाइयों को
इच्छाएं मानव को
नहीं छोड़ती हैं।

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

अपहरण

” अपहरण “हाथों में तख्ती, गाड़ी पर लाउडस्पीकर, हट्टे -कट्टे, मोटे -पतले, नर- नारी, नौजवानों- बूढ़े लोगों  की भीड़, कुछ पैदल और कुछ दो पहिया वाहन…

Responses

  1. “न आने का मालूम न जाने का मालूम
    बीच के ही सपनों में होता है मन गुम।
    खुली नींद सपना जैसे ही टूटा
    वैसे ही डोरों से नाता छूटा।”
    जीवन के एक अलग ही दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती हुई कवि सतीश जी की बेहद गंभीर रचना, जो कुछ सोचने को मजबूर कर देती है।
    बहुत लाजवाब अभिव्यक्ति, उत्तम लेखन

+

New Report

Close