मुझमे थोड़ी सी अच्छाई, शायद बाकी है
इस लिए ठोकरे राहों में बेसुमार है
मुझमे तेरी पड़छआई शायद बाकी है
की आज भी टिका हुआ हूं
जीवन के इस चक्रव्यू फसते जा रहा हूँ
कौन दोस्त और कौन शत्रु में भौचक्का सा हो रहा हु
उम्मीद की लौ धुमिल सी दिख रही है
ज़िंदा हु क्यों की तेरे साथ होने पे ऐतबार है
राजनीति आफिस की रास ना आती
हम मज़दूर है सतत संग्राम ही हम को भाती