‘गाँव में हाथ, कई हाथ थामे रखते हैं,
शहर में खींचने को सिर्फ पांँव होता है..
तरक्की कहने को कितनी ही की हो शहरों ने,
यूँ कुछ भी कह लो मगर गाँव, गाँव होता है..’
– प्रयाग
‘गाँव में हाथ, कई हाथ थामे रखते हैं,
शहर में खींचने को सिर्फ पांँव होता है..
तरक्की कहने को कितनी ही की हो शहरों ने,
यूँ कुछ भी कह लो मगर गाँव, गाँव होता है..’
– प्रयाग