मुझको तो बस तन्हाई में ही जीना है
सिसक-सिसक कर रहना है
घुट-घुट आँसू पीना है
कोई ना समझा मेरी पीर को
तो तुम क्या समझोगे !
नहीं किया कभी प्यार किसी ने
तो तुम क्या मुझको दिल दोगे !
अब तो आदत हो चली पीर की
अब तो पीर में ही जीना है…
कोई ना समझा मेरी पीर को
घुट-घुट आँसू पीना है…
दिन हो मेरा रोते-रोते
रात कटे करवटें बदलते
मेरे नैना बरसें हर पल
इनका ना कोई महीना है
कोई ना समझा मेरी पीर को
घुट-घुट आँसू पीना है…