चलो कुछ लिखते हैं
चलो कुछ लिखते हैं
एक अरसा हो गया कुछ लिखा ही नहीं
जिसे लिख सकें ऐसा कोई ख्याल दिखा ही नहीं
समझ नहीं पाते, लिखें तो कहाँ से शुरुआत करें
अपनी, या जग की, या फिर जग और अपनी. किसकी बात करें
यही सोच कर शुरुआत भी नहीं कर पाते
शबों से दो दो हाट ही नहीं कर पाते
कुछ शुरू भी करें तो अधूरा रह जाता है
शब्द ही नहीं मिलते, ख्याल धुंधला रह जाता है
लिख के कुछ बन भी लें तो अच्छा नहीं लगता
शब्दों को कितना भी निचोड़ लें पर सोना नहीं निकलता
पर अगर खुद के लिए लिखें तो कैसा हो
कुछ लिखें, जिसे कोई पड़े नहीं जिसका कोई मोल ना लगाए
जो खुद को अच्छा लगे किसी और को समझ आये या ना आये
क्या लिख रहे हैं क्या नहीं इसकी चिंता ना हो
कुछ ऐसा जिसे कोई अच्छे बुरे मे गिनता ना हो
पर खुद को अच्छा लगे ऐसा क्या लिखें
एक अरसा हो गया खुद से बात ही नहीं हुई
इस कामकाज मे इतना खो गए के अपने आप से मुलाकात ही नहीं हुई
ठीक है, खुद को ढून्ढ लय फिर लिखेंगे
पर कुछ लिखेंगे, तभी तो खुद से मिलेंगे
ऐसा करते हैं, कुछ पल दुनियदारी से आंखें मूँद लेते हैं
कुछ लिखते कुछ मिटाते कहीं खुद को ढून्ढ लेते हैं
हाँ यही सही है, चलो फिर कुछ लिखते हैं
Bahut khoob 🙂
Good one