चलो चुप लफ्जों
चलो चुप लफ्जों को मिल के बाँट लेते है
चल निकले लफ्जों को मिटटी से पाट देते है
वो तेरा कहना मुझे मौसम की तरह
चल तीर को किसी शाख पे गाड़ देते है
वो तेरा मिलना किसी अजनबी जैसे
चल इसे पहली मुलाक़ात का नाम देते है
वो तेरा बारहा जाना फिर रूठ के मुझसे
चल इसे तेरे क़दमों की ख़ता मान लेते है
वो हर बात पे कहना तुम वैसे न रहे ‘अरमान’
चल इसे वक़्त के साथ चलना जान लेते है
Good
Superb