प्रगति पथ पर दौङ लगाए
चलो नव कृतिमान बनाए।
पग- पग पर आने वाली बाधाओं से
हंसकर अपनी पहचान बनाए।।
चाहे जितनी डगर कठिन हो
पर अपना विश्वास अडिग हो
परिश्रम की मिठास की खबर उसे क्या
जिसका जीवन शूल विहीन हो
चलो,पतझड में एक फूल खिलाएं ।।
करूँ जगत में काम कुछ ऐसा
जीवन हो वृक्षों के जैसा
नदी की धार कभी बन जाऊँ
दुख दरिद्र दूर बहा ले जाऊँ
खुद की आन की ना हो चिन्ता
चलो, औरों का सम्मान बनाए।।
बहुत जी लिया खुद की खातिर
महत्वाकांक्षा में बना मैं शातिर
इस लालसा का अंत, कहाँ है आख़िर
अपने बागों से सुन्दर पुष्प चून
चलो,बसन्त सा,गैरो का जीवन महकाए।।
सुमन आर्या