चलो पतझड मेंफूल खिलाएं
प्रगति पथ पर दौङ लगाए
चलो नव कृतिमान बनाए।
पग- पग पर आने वाली बाधाओं से
हंसकर अपनी पहचान बनाए।।
चाहे जितनी डगर कठिन हो
पर अपना विश्वास अडिग हो
परिश्रम की मिठास की खबर उसे क्या
जिसका जीवन शूल विहीन हो
चलो,पतझड में एक फूल खिलाएं ।।
करूँ जगत में काम कुछ ऐसा
जीवन हो वृक्षों के जैसा
नदी की धार कभी बन जाऊँ
दुख दरिद्र दूर बहा ले जाऊँ
खुद की आन की ना हो चिन्ता
चलो, औरों का सम्मान बनाए।।
बहुत जी लिया खुद की खातिर
महत्वाकांक्षा में बना मैं शातिर
इस लालसा का अंत, कहाँ है आख़िर
अपने बागों से सुन्दर पुष्प चून
चलो,बसन्त सा,गैरो का जीवन महकाए।।
सुमन आर्या
पतझर में फूल खिलाने के विचार अति उत्तम है।
धन्यवाद ।
बहुत खूब
धन्यवाद
सुंदर रचना
सुन्दर
सुंदर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद
Wah सुंदर सोच की सुंदर रचना👏
धन्यवाद
स्व की भावना के स्थान पर ‘पर’ की सेवा की भावना प्रकट हुई है। उपमा और अनुप्रास से अलंकृत सुन्दर पंक्तियाँ हैं
बहुत बहुत धन्यवाद ।आभारी हूँ मार्गदर्शन हेतु ।
V nice
कवि ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं