चांद की चमक
चांद की चमक
और तुम्हारी मेहक
एक सी है
दोनों मुझ तक पहुंच जाती है
लेकिन लौट न जा पाती है
और तू है की मुझे समझ ही नहीं पाती है
इतना क्यों इतराती है!!
ये जो तेरी आंखे है
मुझे बहुत सताती है
कभी हसाती है तो कभी रुलाती है
आखिर में न जाने मुझे अकेला छोड़ जाती है
nice
Shukriya
beautiful poem!
? thanks
Waah
Thanks
Good