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चित्र

साँझ हो रही है,
ऊंचे पहाड़ों के शिखर
बादलों से आलिंगन कर रहे हैं।
साफ साफ कुछ नहीं दिख रहा है,
परस्पर प्रेम है
या
बस दिखावा है।
जो भी है
कुछ तो घटित हो रहा है वास्तव में।
अंधेरा होगा तभी सुबह फिर उजाला होगा।
अब
रात भर चोटियों में
फुहारें बरसनी ही हैं।
फुहारें वहाँ बरसेंगी
मन हमारा रोमांचित है।
लेकिन चोटियों पर खड़े वे पेड़
शान्त क्यों हैं,
जिन्हें सबसे पहले बादलों का स्पर्श करना है।
— डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत, उत्तराखंड।

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