जिंदगी को कहीं कैद कहीं आजाद देखा
फिर भी न बदलता उसका स्वभाव देखा
बुंद बनकर आसमां से लहराते आते देखा
कयी बोझिल चेहरे को पल में हर्षाते देखा
चूल्हे पर जलकर फिर आसमां में जाते देखा
प्यालों में जा तन मन की थकान मिटाते देखा
स्वयं को जमाकर औरों पे शीतलता लुटाते देखा
जिनके तन जले उन पर मरहम बन छाते देखा
पर हित लुट जाने वाले को नित भोजन बनाते हैं
तब भी जीवन भर स्वार्थि बन सांसों को घटाते देखा