जहां में चाहे गम हो या खुशी क्या
गजल : कुमार अरविन्द
जहां में चाहे गम हो या खुशी क्या |
मेरे मा – बैन रंजिश दोस्ती क्या |
खुदा मुझको यकीं खुद पे बहुत है |
तो पंडित हो या चाहे मौलवी क्या |
मुहब्बत के ‘ चरागे – दिल बुझे हैं |
तो जाये आज या कल जिंदगी क्या |
हजारों ‘ ख्वाहिशें ‘ फीकी पड़ी हैं |
मुकद्दर है नही तो फिर कमी क्या |
अगर ‘ तुम छोड़ दो लड़ना तो सोचूं |
गुलों की खार से होगी दोस्ती क्या |
very nice thinking
धन्यवाद