जिसे सर झुकाने की आदत नहीं है
उसे हर बशर से मोहब्बत नहीं है
दुःखा दिल किसी का ख़ुशी मैं मनाऊँ
मेरे दिल की ऐसी तो फ़ितरत नहीं है
वो अपने किए पर पशेमां बहुत है
नज़र भी मिलाने की हिम्मत नहीं है
बहा आई दरिया में लख़्त ए जिगर को
ज़माने से लड़ने की ताक़त नहीं है
समझ आ चुका है ये रिश्तों का मतलब
किसी आसरे की ज़रूरत नहीं है