अपनी हथेली पर शहीदों के नाम की मेंहदी रचाता रहा हूँ मैं,
तिरंगे के रंग में शहादत का रंग मिलाता रहा हूँ मैं,
हार कर सिमट जाते हैं जहाँ हौंसले सभी के,
वहीं हर मौसम में सरहद पर लहराता रहा हूँ मैं,
सो जाती है जहाँ रात भी किसी सैनिक को सुलाने में,
अक्सर उस सैनिक को हर पल जगाता रहा हूँ मैं,
दूर रहकर जो अपनों से चन्द स्वप्नों में मिलते हैं,
उन्हें दिन रात माँ के आँचल का एहसास कराता रहा हूँ मैं॥
राही (अंजाना)