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तुम्हारा ख़याल आया हो

कोई ख्वाहिश कहाँ
कोई पछतावा भी नहीं
पतझङ-सी है वीरानी
बसंत आया ही नहीं
दूर तक फैला है सूनापन
जैसे शून्य निकल आया हो
हाँ, कुछ इस तरह
तेरा ख़याल आया हो ।
काली निशा की छाया में
अर्णव में खामोशी छायी है
पर उसके तलचर में
सुनामी की तरंगों ने
जैसे पनाह पायी हो
हाँ, कुछ इस तरह
तेरा खयाल आया हो ।

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