तुम्हारा ख़याल आया हो
कोई ख्वाहिश कहाँ
कोई पछतावा भी नहीं
पतझङ-सी है वीरानी
बसंत आया ही नहीं
दूर तक फैला है सूनापन
जैसे शून्य निकल आया हो
हाँ, कुछ इस तरह
तेरा ख़याल आया हो ।
काली निशा की छाया में
अर्णव में खामोशी छायी है
पर उसके तलचर में
सुनामी की तरंगों ने
जैसे पनाह पायी हो
हाँ, कुछ इस तरह
तेरा खयाल आया हो ।
हृदय की वेदना की बहुत ही ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति
सादर आभार
सादर आभार गीता जी
हृदय को छूती हुई रचना
सादर आभार
बहुत खूब
बहुत बहुत धन्यवाद