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तुम्हारे सिले होंठ…

आजकल बड़े पैतरे आजमाने लगे हो तुम!
मुझसे दूर जाने के…
इतनी समझ आई कहाँ से तुम में?
पहले तो तुम बहुत नादान हुआ करते थे…
अच्छा तो अब ये भी मेरी
संगत का असर है!
ऐसा ही बोल रहे हैं
तुम्हारे सिले होंठ…
काश! कुछ और भी सीख जाते तुम मुझसे
रिश्ते संजोना, दिल रखना, वफ़ाई
तो कितना अच्छा होता!
यूंँ टूटते नहीं हम
बिखरते नहीं हम…
और समेटना नहीं पड़ता मुझे
जज्बातों को इस तरह
गज़लों में, कविताओं में
जिंदगी नहीं ढूंढते हम…

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