तुम्हारे सिले होंठ…
आजकल बड़े पैतरे आजमाने लगे हो तुम!
मुझसे दूर जाने के…
इतनी समझ आई कहाँ से तुम में?
पहले तो तुम बहुत नादान हुआ करते थे…
अच्छा तो अब ये भी मेरी
संगत का असर है!
ऐसा ही बोल रहे हैं
तुम्हारे सिले होंठ…
काश! कुछ और भी सीख जाते तुम मुझसे
रिश्ते संजोना, दिल रखना, वफ़ाई
तो कितना अच्छा होता!
यूंँ टूटते नहीं हम
बिखरते नहीं हम…
और समेटना नहीं पड़ता मुझे
जज्बातों को इस तरह
गज़लों में, कविताओं में
जिंदगी नहीं ढूंढते हम…
बहुत ख़ूब
Thanks
वाह वाह, अतिसुन्दर
🙏🙏
बहुत ही बेहतरीन
🙏🙏
Very nice
🙏🙏
बहुत खुब कहा है आपने
गागर मे सागर है
कविता की पहली और आखिरी 4-4 लाईनो मे एक अच्छा मैसेज है👌👌✍✍
थैंक्स फॉर कमेंट्स
आपने इतनी गहराई से पढ़ा
उसके लिए धन्यवाद
क्या बात है अति सुन्दर
धन्यवाद आपका
🙏🙏
धन्यवाद आपका
बहुत ही उम्दा