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तुम्हारे हुस्न के मुट्ठीगंज में फंसकर

तुम्हारे हुस्न के मुट्ठीगंज में फंसकर
इश्क़ अरैल घाट में डूब जाता है।
दिल धड़कता था सिविल लाइन सा,
अब यादों का कंपनी बाग बन जाता है।।

~सुरेंद्र जायसवाल (प्रतापगढ़)

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