दर्द ऐसे भी अपने कोई संभाला करता है।
दर्द ऐसे भी अपने कोई संभाला
करता है।
जैसे चराग जलता है मगर उजाला
करता हैं।।
‘
सफर करने निकले थे कुछ रोशनी
को लेकर।
पर ये तूफान है कि हर वक्त दम
निकाला करता हैं।।
,
दिन गुजरता हैं जिसका बस सूखी
रोटी की लिए।
अफसोस हैं कि वो ख्वाबो में एक
निवाला करता हैं।।
,
जिक्र उसका भी था मेरे बिखरे हुए
कुछ पन्नों पर।
कि जो कागज के खेलों मे उसे उछाला
करता हैं।।
‘
और क्यूँ आए भी चाँद वो जब जमीन
का तो नहीं हैं।
फिर भी बेवजह ही ख्वाब कोई पाला
करता हैं।।
@@@@RK@@@@
वाह