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दहकती आग थी

दहकती आग थी कुछ चिंगारियां थी
ये तो बस अपनों की ही रुसवाईयाँ थी

जो कभी पैरहन से लिपटे मेरे चारसू
अब वो न उनकी साथ परछाइयाँ थी

राजेश’अरमान’

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