दामन धैर्य का
धैर्य का दामन टूट रहा प्रभु
फिर देखो न किस्मत रूठ रहा।
अपना यहाँ है कौन यहाँ
तू चुप क्यों बैठे देख रहा।
सब्र नहीं अब मुझमें है
सोच के मन में हैरत है
कैसे कोई किसी के
हिस्से की रोटी लूट रहा।
या कोई कर्ज मुझपे
पूर्व का शेष था जो
इस जन्म में चुकाते
मौन खङा तू देख रहा ।
फिर क्यूँ इन पलकों पर
अश्रु की बुन्द ढलक आए
तेरी रज़ा जब तक न हो
कैसे भाग्य विधाता रूठ रहा ।
हर दर्द तुझी से भेंट मिले
तुझसे ही ठेस मन को लगे
कैसे आशाओं के दीप बुझे
कहाँ माथे पे तेरा आशीष रहा।
बहुत खूब
हृदय स्पर्शी पंक्तियां, बहुत सुंदर