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दीपक की भी एक सीमा है

रात भर दीपक जला,
भोर होने लगी तो बोला,”अब मैं चला”
मैंने कहा और जलो, अभी अंधियारा बाकी है,
“मेरी भी एक सीमा है”, कह कर वो मुस्कुराया
उसकी अर्थपूर्ण मुस्कुराहट में,
एक संदेशा मैंने पाया…
जिसकी जब जितनी ज़रूरत हो,
वह उतना ही मिल पाता है।
उसे पता है, सूरज के आगे उसका क्या काम,
वो चतुर है, उसे समझ है,
उसकी भी एक सीमा है,।
ये उसको भी है भान।

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