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दीप्त जग हो गया सब

सुबह-सुबह की लालिमा
बिखरी हुई है सब तरफ
ओस की बूंद मोती सी
बिखरी हुई है सब तरफ।
भानु का नूर है आलोक
चारों ओर फैला,
धरा-आकाश मानो बन गए
मजनूँ व लैला।
स्वच्छ पावन मिलन
रात- दिन का हुआ जब
सृष्टि होकर सुबह की
दीप्त जग हो गया सब।
कांतिमय हो दिशाएं
खींचती ध्यान सबका,
मनोरम खेल है यह
सुहाना चक्र रब का।

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