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दूजे की भी मदद कर(कुंडलिया छन्द)

दूजे की भी मदद कर, अपना ही मत देख।
ठिठुर रहे जो सड़क पर, उनको भी तो देख।
उनको भी तो देख, खिला दे रोटी उनको,
पहना दे रे वस्त्र, इतना सक्षम है तू तो।
कहे ‘लेखनी’ आज, जरूरत जिनको है वे
पीड़ा में हैं जरा, मदद उनकी तू कर ले।
——- डॉ0 सतीश चन्द्र पाण्डेय

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