दूजे की भी मदद कर(कुंडलिया छन्द)

दूजे की भी मदद कर, अपना ही मत देख।
ठिठुर रहे जो सड़क पर, उनको भी तो देख।
उनको भी तो देख, खिला दे रोटी उनको,
पहना दे रे वस्त्र, इतना सक्षम है तू तो।
कहे ‘लेखनी’ आज, जरूरत जिनको है वे
पीड़ा में हैं जरा, मदद उनकी तू कर ले।
——- डॉ0 सतीश चन्द्र पाण्डेय

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

  1. कवि के कोमल हृदय की भावनाएं दृष्टिगत हो रही हैं इस कविता में, जो लोग सक्षम हैं ,उनसे भी ग़रीबों की मदद करने को कहा गया है
    बहुत सुंदर शिल्प और भाव लिए कुंडलिया छंद की बहुत सुन्दर रचना

+

New Report

Close