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“देखा नहीं तुमने”

ღღ_ख़ुद से लेते हुए इन्तक़ाम, देखा नहीं तुमने;
अच्छा हुआ मेरा अस्क़ाम, देखा नहीं तुमने!
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उतर ही जाता चेहरा मेरा, शर्म से उसी दम;
अच्छा हुआ मेरा अन्जाम, देखा नहीं तुमने!
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कल रात को हर ख़्वाब से, लड़ गया था मैं;
अच्छा हुआ मेरा इत्माम, देखा नहीं तुमने!
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रोया था मैं ही चीखकर, ख़्वाबों की मौत पे;
अच्छा हुआ ये ग़म तमाम, देखा नहीं तुमने!
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सुबह तक पड़े रहे, टुकड़े ख्वाबों की लाश के;
अच्छा हुआ मुझे नाकाम, देखा नहीं तुमने!
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मैंने ही ‘अक्स’ आग दी, मैं ही था शमशान में;
अच्छा हुआ सोज़—ए-निहाँ, देखा नहीं तुमने!!…..#अक्स
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शब्द…………………..अर्थ
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अस्क़ाम = बुराईयाँ, कमियां
इत्माम = प्रवीणता, सिद्धि
सोज़-ए-निहाँ = जलने के निशान

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