Site icon Saavan

देशभक्ति

ये कविता मैने खुद को एक बार बचपन मे रख के,जवानी मे रख के और एक बार खुद को आखिरी सफर मे रह कर महसुस करते हुवे लिखा है,कि हमारे सैनिक भाई क्या सोचते है और ये गंदी सियासत क्या सोचती है, मै आशा करुंगा कि ये आपको पसंद आयेगी,

(देशभक्ति के सफ़र मे)

बन के बादल तीन रंगो मे निखर आउंगा,
एक न्नहा सा देशभक्त हो उभर आउंगा,

इस छोटे बदन को वतन से प्रेम है,
इस न्नहे कलम को वतन से प्रेम है,
जिसे ओढ के मै फक्र से मर जाऊ,
तिरंगे सा हर एक कफ़न से प्रेम है,

ऐसा नही कि मौत आने पे डर जाऊंगा,
बन के बादल•••••••••••••••••••••••

घर के चौखट को अब लांघ के आया हु,
आसु माँ के आचल मे बाँध के आया हु,
ना दर्द है,न मोह है, न चाह है न शिकवा,
बस दुश्मन को निशाने पे साध के आया हु

मौत के बाद शान से तिरंगे मे घर जाऊंगा
बन के बादल ••••••••••••••••••••••••••••••

मौत सामने है फिर भी एक काम चाहता हु,
दोस्त फिर से पुराना हिन्दुस्तान चाहता हु,
ये सियासत ,ये भेदभाव सब भूल जाओ,
आखिरी सफ़र मे यही मुकाम चाहता हु,

तिरंगे मे अपने रक्त से एक रंग भर जाऊंगा,
बन के बादल ••••••••••••••••••••••

विशाल सिंह बागी
9935676685

Exit mobile version