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नदी सुहानी पानी बिन

सागर-सी गहराई बिन।
नदी सुहानी पानी बिन।।
नाच के हाथी नहा रहा था।
और जहाज भी आ रहा था।।
बूटा-बूटा पत्ता -पत्ता
गिरिवर भी हर्षा रहा था।
‘विनयचंद ‘ ले रिक्त घड़ा
बीच नदी पछता रहा था।।

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