नदी सुहानी पानी बिन Pt, vinay shastri 'vinaychand' 4 years ago सागर-सी गहराई बिन। नदी सुहानी पानी बिन।। नाच के हाथी नहा रहा था। और जहाज भी आ रहा था।। बूटा-बूटा पत्ता -पत्ता गिरिवर भी हर्षा रहा था। ‘विनयचंद ‘ ले रिक्त घड़ा बीच नदी पछता रहा था।।