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नारी शक्ति

मैं पुत्र उस नारी की जिनकी आंखों में पीड़ा देखी ,
उजागर करता हूं उन पीड़ा का……….।
जनमानस से भरा जिसने धरती को ,
घर के कोनों में मजबूर हुई जीने को।
दुर्गा, काली के रूप में पूजा जिनको  ,
शर्मसार किया उनको ।
सृष्टि की उत्पत्ति का प्रारंभिक बीज है वो ,
फिर भी गोद में कुचला उनको।
नए – नए रिश्ते को बनाने वाली रीत है वो,
हमने हर रिश्तो में नीचा दिखाया उनको।
उसने हममें कोई फर्क नहीं किया ,
हमने सामाजिक जंजीर दिया।
उसने हमको नौ महीने गोद में रखा ,
हममें से कोई उनका चीरहरण किया।
कांटो में स्वयं चली, हमें फूलों की सेज दिया।
हमने उन पर षड्यंत्र रचा,
आखिर कैसी रीत है ये l
सच में क्या नारी अबला है?
ऐसी भूल ना कर, ये तो स्नेह है उनका ।
कहीं धैर्य खत्म ना हो जाए,
फिर से काली, दुर्गा ना बन जाए l
बदल लो अपनी नजरिये को l
बदल लो अपनी नजरिये को ll                    
                         
                                            राजीव महली

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